Civil Services Success Story: सिविल सर्विसेज की परीक्षाएं देश की सबसे कठिन परीक्षाओं में से एक हैं और इसे पास करना कोई छोटी उपलब्धि नहीं है। सफलता की कहानी तब और भी दिलचस्प हो जाती है जब एक उम्मीदवार कठिन परिस्थितियों का सामना करते हुए इस परीक्षा को पास करता है। आज हम बात करने जा रहे हैं अधिकारी सविता प्रधान के बारे में, जो दो बच्चों की मां हैं।
सविता प्रधान वर्तमान में एक सफल अधिकारी हैं, लेकिन उनका ये सफर बिल्कुल भी आसान नहीं था। शादी के बाद उन्हें घरेलू हिंसा का शिकार होना पड़ता था। आइए विस्तार से जानते हैं, उनके बारे में।
मध्य प्रदेश के मंडई गांव में एक आदिवासी परिवार में जन्मी सविता के परिवार की आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी नहीं थी कि वह उनकी पढ़ाई का खर्च उठा सके। वह शुरुआत से ही पढ़ाई में अच्छी थी। जिस वजह से उन्हें स्कूल से स्कॉलरशिप मिलती थी, जिसकी मदद से उन्होंने अपनी पढ़ाई जारी रखी। बता दें, वह अपने गांव में पहली ऐसी लड़की थी, जिसने कक्षा 10वीं पास की थी। 10वीं कक्षा के बाद उन्हें 7 किमी दूर एक स्कूल में दाखिला मिल गया। स्कूल जाने के लिए वह बस से जाया करती थी। जिसका एक साइड का किराया 2 रुपये था। किराया चुकाने के लिए उनकी मां को छोटी-मोटी नौकरी किया करती थी। बता दें, सविता ने साइंस स्ट्रीम से पढ़ाई की थी और डॉक्टर बनने की चाहत रखती थीं। जब सविता अपनी शिक्षा पूरी कर रही थी तो एक अमीर परिवार ने उनके परिवार सामने शादी का प्रस्ताव रखा। तब वह महज 16 साल की थीं। घरवाले गरीब थे, उन्होंने सोचा की बेटी पैसे वालों के घर जाएगी और उसकी शादी करवा दी। शादी के बाद सविता को घरेलू हिंसा का शिकार होना पड़ा था।
शादी के बाद, सविता के ससुराल वालों ने उसके साथ अच्छा व्यवहार नहीं करते थे। ससुराल में कई बातों पर रोक टोक थी। जिसमें खाने की मेज पर सभी के साथ खाना न खाने की अनुमति भी शामिल थी। घर में सभी के खाना खा लेने के बाद उसे खाना खाने के लिए कहा जाता था। कई बार ऐसा होता था कि खाना सविता के बचता नहीं था, लेकिन उसे अपने लिए दोबारा खाना बनाने की अनुमति नहीं मिलती थी। कई बार तो वह रोटियां बाथरूम में ले जाकर खा लेती थीं। उन्हें जोर से हंसने से भी मना किया गया था। वहीं पति अच्छा नहीं था जो अक्सर उससे मारपीट करता था और जान से मारने की धमकी देता था। दो बच्चे होने के बाद भी ससुराल वाले उसके साथ मारपीट और उत्पीड़न करते रहे थे।
इतना कुछ सहने के बाद एक बार सविता ने अपना जीवन खत्म करने का फैसला ले लिया था। जब वह पंखे से लटकने वाली थी तब भी उसकी सास उसे खिड़की से देख रही थी। हालांकि, सविता की सास ने उसे बचाने के लिए कुछ नहीं किया। उसके पति ने उसके बेटे को शारीरिक रूप से नुकसान पहुंचाने की कोशिश की। इसके बाद उन्होंने अपने बेटे को बचाया और उन्हें उस समय महसूस हुआ कि इन लोगों के लिए अपनी जान देना व्यर्थ है जो उसकी बिल्कुल भी परवाह नहीं करते।
इतना कुछ हो जाने के बाद उन्होंने ससुराल को छोड़ दिया। बच्चे भी उनके साथ आए। वहीं कुछ समय बाद वह घर का खर्च चलाने के लिए एक ब्यूटी सैलून चलाती थीं और बच्चों को ट्यूशन पढ़ाती थीं। बतादें, जहां एक ओर ससुराल वालों ने साथ नहीं दिया, वहीं मुश्किल की इस घड़ी में मायके वालों ने उनका हौसला बढ़ाया। उनके माता-पिता और भाई-बहन सविता को काफी सपोर्ट करते थे। कुछ समय बाद उन्होंने लोक प्रशासन में बीए के लिए दाखिला लिया। सविता ने भोपाल की बरकतुल्लाह यूनिवर्सिटी में परीक्षा में टॉप किया था। जिसके बाद उन्होंने एमए की डिग्री हासिल की थी।
पढ़ाई के दौरान उन्हें फिर उन्हें राज्य सिविल सर्विसेज (MPPSC) के बारे में पता चला था। परीक्षा से जुड़ी जानकारी जुटाने के बाद उन्होंने तैयारी शुरू कर दी थी। जब उन्होंने प्रीलिम्स की परीक्षा निकाली ली थी, उसके बाद उन्होंने पंडित को अपना हाथ दिखाया था, जिसमें पंडितजी ने कहा था कि इस लड़की के भाग्य में सरकारी नौकरी की रेखा नहीं है। वहीं पंडित जी के इस बयान के बाद उन्हें मेंस परीक्षा भी क्लियर की। जिसके बाद वह स्टेट सिविल सर्विसेज के इंटरव्यू देने इंदौर गई थी और उनका सिलेक्शन हो गया। बता दें, 24 साल की उम्र में, वह मुख्य नगरपालिका अधिकारी के रूप में नियुक्त हुई थी। बता दें, सविता ने पहले प्रयास में ही MPPSC की परीक्षा क्लियर की थी।
तलाक के बाद उन्होंने दूसरी शादी कर ली हैं और खुश हैं। वर्तमान में वह ग्वालियर और चंबल के लिए संयुक्त निदेशक, शहरी प्रशासन के पद पर तैनात हैं।