Vikas Divyakirti on India vs Bharat debate: for UPSC IAS CSE students Vikas Divyakirti drishti ias views-Inspire To Hire


यूपीएससी या किसी राज्य के पीसीएस का इंटरव्यू हो, या फिर किसी अन्य सरकारी नौकरी का, साक्षात्कार बोर्ड द्वारा करेंट अफेयर्स एवं विवादास्पद मुद्दों से जुड़े प्रश्न पूछ लिए जाते हैं। सरकारी नौकरी के इंटरव्यू की तैयारी कर रहे अभ्यर्थियों के लिए भारत बनाम इंडिया का मुद्दा भी काफी महत्वपूर्ण है जो हाल ही में काफी छाया रहा। सियासत तब गरमाई जब केंद्र सरकार ने जी-20 रात्रिभोज के निमंत्रण में राष्ट्रपति को प्रेसिडेंट ऑफ भारत कहकर संबोधित किया। विपक्ष ने सरकार पर आरोप लगाया कि वह उनके गठबंधन के नाम ‘इंडिया’ के चलते देश का नाम बदलकर भारत करना चाह रही है। इस मुद्दे पर पक्ष-विपक्ष के नेता आमने-सामने आए। जमकर जुबानी जंग हुई। 

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राजनीति से इतर यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा के अभ्यर्थियों को अपने सरल, सहज और खास अंदाज में पढ़ाने के लिए मशहूर विकास दिव्यकीर्ति ने भी हाल ही में इस मुद्दे पर अपनी राय व्यक्त की। उन्होंने कहा कि देश का नाम देश की भाषा में होना चाहिए। इंडिया दैट इज भारत के बदले भारत दैट इज इंडिया को उन्होंने अपनी पसंद बताया। 

दृष्टि आईएएस कोचिंग सेंटर ( Drishti IAS ) के संस्थापक और डायरेक्टर डॉ विकास दिव्यकीर्ति ( Vikas Divyakirti ) ने दिल्ली विश्वविद्यालय के मिरांडा हाउस कॉलेज में कहा, ‘भारत बनाम इंडिया का मुद्दा इस समय क्यों उठा, इसके पीछे राजनीतिक कारण है, आपको भी पता है और मुझे भी। मेरी समझ में दो तरह से इस मुद्दे को देख सकते हैं, पहली बात कि यह उठा क्यों? और दूसरी बात कि सही क्या है, गलत क्या है। यह अभी क्यों उठा, इसके पीछे की राजनीतिक पृष्ठभूमि पूरा देश जानता है। पर कोई मुद्दा राजनीति की वजह से उठा, इसलिए वो मद्दा ही गलत है, ऐसा नहीं होता है। राजनीति कई बार सही तो कई बार गलत काम कर देती है। और जनता के दवाब में अगर सही काम हो ही जाए, चाहे राजनीतिक वजह से हो, तो भी क्या बुरा है। अब हम इस पर बात करते हैं कि भारत और इंडिया में से क्या सही है? संविधान सभा में इस पर काफी बहस हुई थी। यह हमारे संविधान का अनुच्छेद एक है। इसमें लिखा है कि इंडिया दैट इज भारत शैल बी ए यूनियन ऑफ स्टेट्स।’ 

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विकास दिव्यकीर्ति ने कहा, ‘संविधान निर्माण के समय बड़ी दिलचस्प डिबेट थी कि इंडिया का नाम भारत रखें या कुछ और, कुछ ने आर्याव्रत कहा, कुछ ने हिंदुस्तान कहा, सब नाम चले। अंत में भारत और इंडिया पर ही सहमति बनी। नेहरू जी ने खुलकर तो नहीं लेकिन उनके दृष्टिकोण से जो बात वहां ज्यादा आई वो यह थी कि हमारे संविधान के बनने की प्रक्रिया में जो बहुत सारे एक्ट थे, जो अंग्रेजों ने बनाए थे, जैसे इंडिया इंडिपेंडेंस एक्ट 1947, 1935 का एक्ट, इन सबमें इंडिया का इस्तेमाल था, उस समय अन्य देशों से जो समझौते हो रखे थे, उन सबमें इंडिया नाम था, पश्चिम की दुनिया हमें इंडिया के नाम से जानती थी। अमेरिका हो या फ्रांस हो, सब इंडिया के नाम से जानते थे। नेहरू जी मिजाज था कि हमें चीजों को वैश्विक नजरिए से देखना है क्योंकि उनकी रुचि अंतर्राष्ट्रीय मद्दों पर काफी ज्यादा थी। मेरे ख्याल से इन सब वजहों से तय हुआ कि हम अपना नाम इंडिया रखेंगे। लेकिन इंडिया के बराबर महत्व भारत का भी रहेगा। तो संविधान में लिखा गया – इंडिया दैट इज भारत यानी इंडिया जो कि भारत है राज्यों का एक संघ होगा।’

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यूपीएससी कोचिंग की दुनिया में बेहद लोकप्रिय शिक्षक विकास दिव्यकीर्ति ने आगे कहा ‘कुछेक दिन पहले मैं हॉलैंड में एक टैक्सी में बैठा था।  दिलचस्प बात है, सोचिएगा। टैक्सी का ड्राइवर मोरक्को का था। टैक्सी के ड्राइवर को जैसे ही पता कि मैं भारत से हूं, उसने मुझसे वही सवाल पूछा। उसने बोला कि भारत और इंडिया की डिबेट के बारे में सुन रहे हैं, आप क्या सोचते हैं? मैं हैरान हो गया कि ये मोरक्को का आदमी हॉलैंड में रहता है, इसके मन में सवाल आ रहा है, तो मैंने कहा कि यह तो राजनीतिक कारणों से है। लेकिन बात सही है। जैसे बॉम्बे मुंबई हुआ मुझे खुशी हुई क्योंकि मुंबई की आबादी के लिए जो मजा मुंबई में है वो बॉम्बे में नहीं है। बॉम्बे तो अंग्रेजों ने नाम दिया था। कोलकाता को अंग्रेजों ने केलकटा किया तो बंगाल के लोगों ने उसे कोलकाता कर दिया। डेल्ही को दिल्ली के लोगों ने दिल्ली कर दिया। अगर बर्मा का नाम म्यांमार होना सही है क्योंकि जनता की आवाज म्यांमार में है, बर्मा में नहीं । श्रीलंका और सीलोन की डिबेट में वो अपने आपको श्रीलंका मानने चाहें, क्योंकि उनकी भाषा श्रीलंका बोलती है। तो मेरे मन में यह सवाल आता है कि भारत का नाम इंडिया क्यों होना चाहिए। मैं स्पष्ट कर दूं कि मैं सरकार के पक्ष में नहीं बोल रहा हूं। मुझे उनसे कोई मतलब नहीं। मैं विचार की बात कर रहा हूं।’ 

उन्होंने कहा, ‘मैं जब संविधान पढ़ाया करता था तो अनुच्छेद पढ़ाते हुए हमेशा बोलता था कि मुझे चुभन होती है यह बोलते हुए कि ‘इंडिया दैट इज भारत’। दोनों ही लिखने थे तो भारत दैट इज इंडिया कर देते। मोरक्को के ड्राइवर ने कहा ‘हमारा नाम मोरक्को फ्रेंच लोगों की वजह से पड़ गया। मोरक्को के लोग मोरक्कों को मगरीब बोलते हैं। जब मैं सऊदी अरब गया तो वहां के लोगों के पूछने पर मैंने जब बताया कि मैं मोरक्को से आया हूं तो वो मुझे इस भाव से देखने लगे जैसे मैं पागल हूं। वो बोले कि तुम मगरीब से आए हो।’ अगर मगरीब की आबादी खुद को मगरीब कहकर खुश है तो उसे फ्रेंच लोगों की वजह से मोरक्को क्यों कहा जाए। इंडिया शब्द वेस्ट के लोगों ने दिया और बुरे भाव से दिया। उनकी नजर में इंडियन होने का मतलब है पिछड़ा हुआ होना, रेड इंडियंस, वेस्ट इंडियंस। यह मामला आज राजनीतिक वजहों से उठा है जिसमें मेरी रुचि जरा सी भी नहीं है। लेकिन यह आज हो कभी भी हो, मैं इस पक्ष में हूं कि देश का नाम देश का भाषा में होना चाहिए। और देश की भाषा भारत के पक्ष में है। आप इंडिया भी रख लीजिए। ‘इंडिया दैट इज भारत’ के बदले ‘भारत दैट इज इंडिया’ मेरी पहली पसंद होगी। मुझे इंडिया से दिक्कत नहीं है पर भारत मेरी पहली मोहब्बत है।’


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